Tuesday, May 29, 2007

......श्री कृष्णम् समर्पयामी।


मैं,
मेरी सोच,

मेरे खयाल,
जीया हुआ हर दिन,
काटे गये महीने,
और बितायी हर साल।
हर हद तक गया अनुराग,
परिपक्वता,
और फिर चुंबक के एक से छोरों सा वैराग।
मेरा सारा आलस, सारे काम,
मेरे से टूटा और जुङा हर नाम,
कूट-कूट कर भरे व्यसन, वासना, दुर्विचार,
मेरा अहंकार,
हर दिन की जीत ,
हर रोज़ की हार,
मेरा प्रेम,
समर्पण,
मेरा जुङाव और भटकाव,
टूटन, तडपन खुद का चिंतन,
कंठ तक भरा रीतापन,
मजे में डूबी हर एक बात,
मुझे उठाने और गिराने मैं लगे सैंकङों हाथ,
उसकी नफरत, मेरा प्यार,
हर अनुभव, हर चोट, हर मार,
सारी प्राप्तियाँ, सारे आनंद, सारे सुकून,
मुझसे जुडा हर काला, सफेद, तोतई और मरुन,
मेरी सारी ताकत,
सारी खामी,
.....श्री कृष्णम् समर्पयामी।
umashankarvashistha

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