जन्म तिथि : 18 मई 1964
पिता का नाम : श्री विजय कुमार श्रीवास्तव
जन्म स्थान : इलाहाबाद - उ.प्र.
शिक्षा : बी ई (मैकेनिकल इन्जीनयरिंग)
कार्यरत :
एन टी पी सी लिमिटेड – अभियंता के पद पर
प्रकाशन : १००० से अधिक रचनायें राष्ट्रीय सहारा, नवभारत टाईम्स, पंजाब केसरी, अमर उजाला सहित विभिन्न राष्ट्रीय पत्रो में प्रकाशित।
कविता संग्रह– सत्य जीतता है – हिन्दी अकादमी दिल्ली से 1999 में प्रकाशित।
इ-मेल : murlimanohars@yahoo.com, murlimanohars@gmail.com
ब्लॉग :
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सेंसेक्स और चुनाव मुरली मनोहर श्रीवास्तव |
आजकल चुनाव कब होते है और कब रिजल्ट आता है पता ही नहीं चलता। कौन जीता कौन हारा यह बात तो छोड़ ही दीजिये। इस समय सेंसेक्स इम्पार्टेंट है। हर ऐरा गैरा नत्थू खैरा मुँह उठाये शेयर ब्रोकर बना बैठा है, इतना ही नहीं ठेले वाले भी ब्लू चिप शेयरों के म्युचुअल फंड में इंवेस्ट कर रहे हैं कल हमारे मुहल्ले का रिक्शे वाला टी सी एस और रिलायंस का रेट पूछ रहा था। मैं चौका तो वह बोला, “साहब मिड कैप के दस शेयर लिये थे पिछले महीने की बचत से, सोच रहा हूँ इनफोसिस और टेल्काम कुछ नीचे गिरे तो दो चार शेयर डाल लूँ। वैसे सीमेंट और टेक्नालाजी के शेयरों के बारे में आपकी क्या राय है?”
मुझे लगा मैं चक्कर खा कर गिर पड़ूँगा, इतना ज्ञान तो मुझे भी नहीं है शेयर मार्केट का, दूसरे मैं खुद रिक्शे पर आइडिया लेने बैठा था पर यह तो मुझसे अपना ही समान्य ज्ञान बढ़ा रहा है। वैसे भी आजकल हालात इतने बुरे हैं कि चाय पान की दुकान पर या मजदूरों की बस्ती में समय गुजार कर किसी नये विचार का संचार नहीं होता, इस देश में गरीबी और भ्रष्टाचार का इतना अधिक दोहन हो चुका है कि इस विषय में कुछ कहते ही पब्लिक हँसने लगती है, उसे लगता है यह राइटर नया है और अपने लिये जगह तालाश रहा है। भला इसमें नया क्या है रात दिन तो टी वी वाले गरीबी ग्लैमर और भ्रष्टाचार का लाइव टेलीकास्ट कर रहे है अभी तक तक तो इसकी सेहत पर कोई फर्क पड़ा नहीं।
मैं अपने मसाले के चक्कर में था। मैंने बात का रुख शेयर और सेंसेक्स से मोड़ कर चुनाव की ओर किया।
“इस बार कौन लड़ रहा है तुम्हारे क्षेत्र से”, मैंने पब्लिक का प्रिय विषय टच करने की कोशिश की।
“क्या हमारे क्षेत्र में चुनाव हो रहे हैं हमें पता ही नहीं। अच्छा हुआ आपने बता दिया वर्ना हमें तो पता ही नहीं चलता।” अजीब हालत है जब इसे चुनाव का पता नहीं तो वोट क्या डालेगा।
“क्या बात करते हो अरे पूरी की पूरी राष्ट्रीय टीम लगी है एक दल की और दूसरे सभी दल एक उम्मीदवार के खिलाफ दूसरे नम्बर की लड़ाई लड़ रहे है।”
“अच्छा”, वह आश्चर्य प्रकट करता हुआ बोला।
मुझे खीझ पैदा होने लगी,
“क्यों कोई आया नहीं क्या वोट माँगने?”
“बाबूजी अब आपसे क्या छुपाना कोई हारे कोई जीते और किसी की सरकार बने क्या फर्क पड़ता है। अब तो मैंने भी बड़े लोगों की तरह वोट डालना और पालिटिक्स में इंटरेस्ट लेना छोड़ दिया है। वो सेल के शेयर का क्या रेट चल रहा है आजकल और पब्लिक सेक्टर में इंवेस्ट्मेट कैसा रहेगा?”
वह फिर काम की बात पर लौटता हुआ बोला।
मैंने कहा, “तुम रिक्शा चलाना छोड़ कर शेयर ब्रोकर क्यो नहीं बन जाते।“
“बाबूजी आप तो मजाक करते हैं मुझे कम्पुटर देखना और माउस पकड़ना कहाँ आता है, हाँ, हमने अपने बेटे को शेयर ब्रोकर के सब ब्रोकर के यहाँ फिट करा दिया है। आजकल वही उसके चेक इकट्ठा करता है और कमीशन से नई बाइक पर चलता है वह भी इंट्रेस्ट फ्री लोन पर खरीदी है उसने, कह रहा था मैं भी इसे चला कर धोनी बनूगा। वही उसका आईडल है। उसी के कहने पर तो मैंने डी मैट खोला है।“
देश में प्रगति का रेट देख कर मैं परेशान हो उठा मैं चाहता हूँ कि चुनाव और पालिटिक्स पर बहस हो और वह है कि मार्केट से नीचे ही नहीं उतर रहा है। मुझे लगा मैं अपना एटीच्यूड़ बदल दूँ।
मैंने पूछा, “किस बैंक का क्रेडिट कार्ड दिलाया है बेटे ने?”
उसकी बाँछे खिल गयीं, “अरे साहब मान गये प्रायिवेट बैंकिंग वालों को मैंने अँगूठा एक कार्ड के लिये लगाया था पर उन्होंने दो भेजा है एक मेरा एक राम प्यारी (मेरी घराणी) का।”
“क्या क्या खरीदा उससे”, मैंने जोड़ा।
“हें हें अब आपसे क्या छुपाना कल गया था शापिंग माल में, धोती कुर्ता और गमछा मिला ही नहीं क्या करता, आप माल वालों को समझाइये कि जिस वर्ग को क्रेडिट कार्ड बंट रहा है वह जींस टी शर्ट नहीं कुर्ता खरीदता है वह भी मोटे कपड़े का सो अगर वे अपना बिजनेस बढ़ाना चाहते हैं तो बंडी और गमछा बेचें।”
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