Sunday, August 26, 2007

परिचय



नाम : शबनम शर्मा
जन्म : जनवरी 20,1956, जन्म स्थान: नाहन
शिक्षा : बी.ए., बी.एड.
सम्प्रति : अध्यापन
उद्देश्य : सरल भाषा में अपनी आवाज़ जन-जन तक पहुँचाना व नए लेखकों प्रोत्साहन देना। समाज को काव्य व लेखन कला से अवगत करवाना व अपने में छुपी समस्त कला व अनुभूतियों को जनसम्पर्क तक पहुँचाना।
प्रकाशन : अनमोल रत्न (काव्य संग्रह), काव्य कुँज (काव्य संग्रह)
करीब 1300 ग़ज़लें, कवितायें, 10 कहानियाँ, 10-12 लघुकथायें और 20 के करीब ज्वलंत मुद्दों पर लेख।
प्रकाशित: समाचार पत्रों में - दैनिक ट्रिब्यून, दिव्य हिमाचल, अजीत समाचार, भास्कर, राँची एक्सप्रैस, गिरीराज, श्रोता समाचार, हिमवंती, हिम सूर्य, हिम सत्ता, इण्डिया गैप्स टुडे और सामाजिक आक्रोश
पुस्तकें: आइना-ए-ग़ज़ल (बम्बई), सर्जक (वियोग), झरोखा-2000 (हैदराबाद), संकल्पना (प्रतापगढ़), सहर (प्रतापगढ़), प्रवाह (रामपुर), काव्य रश्मि (नाहन), अभियान (बम्बई), गंगोत्री (बालाघाट), शताब्दी रत्न निदेशिक (पानीपत), समर्थन (नाहन), अमृत कलश (खंडवा) और हे मातृभूमि (नैमिश्रणाय)
पत्रिकायें: हतिगन्धा (पंचकूला), जगमगदीप (अलवर), फ्रिकरोफन (शिमला), विपाशा (शिमला), समाज प्रवाह (बम्बई), रैन-बसेरा (अहमदाबाद), प्रगति पथ (बुलन्द शहर), शुभ तारिका (अम्बाला), राजकला (लखनऊ), हिम ज्योति (शिमला), डैफोडिल्ज़ (नाहन), चौगान(नाहन), सुरभि (नाहन), सौहार्द (इलाहाबाद), प्रत्याक्षी, नालन्दा दर्पण (नालन्दा), पत्रकार सुमन (प्रतापगढ़), वाभंगी (मथुरा), गंगोत्री (बालाघाट), समर्थन, मरु-गुलशन (जोधपुर), त्रिवेणी साहित्य (गाज़ियाबाद), रेणुका स्मारिका (रेणुका), अखिल भारतीय होम्योपैथिक पत्रिका (खुरजा), सरोपशा (दसूहा), नारी अस्मिता (बढ़ोदरा), सतयुग की वापसी (अलवर), भैरवसुख सागर (अहमदाबाद), शब्द (लखनऊ), सौगात (बारां), शिवम (भोपाल), सुरभि समग्र (लखनऊ), दस्तक (बहादुरगढ़) और संदर्भ (रांची), में ग़ज़लें कवितायें, लेख व कहानियों का प्रकाशन। करीब 600 कविताएँ, कुछ कहानियाँ, लघु कथाएँ उपर्युक्त पत्रिकाओं, अखबारों में प्रकाशित।
विशेष: स्वरचित भजनों की कैसेट बाज़ार में।
सफलता एवं सम्मान : शताब्दी रत्न (पानीपत), सुरभि साहित्य (बम्बई), आर्चाया (पानीपत), ग़ज़ल श्री (कप्तानगंज), महादेवी वर्मा सम्मान ( मथुरा), कवयित्री सम्मान (दिल्ली), काव्य महारथी (इलाहाबाद), कवयित्री सम्मान (स्टेपको, नाहन), कवयित्री सम्मान (कृपालशिला गुरुद्वारा, पाँवटा साहिब), ग़ज़ल रत्न (बम्बई), महिला रत्न (खंडवा), ’स्व. मुकीम पटेल सम्मान’ (बालाघाट, म.प्र.), ’साहित्य रत्न’ (राम साहित्य मंडल, नाहन), ’कवयित्री सम्मान’ (प्रतापगढ़), ’कवयित्री सम्मान’ (लायन्स कल्ब, नाहन), ’काव्य प्रज्ञ’(रामपुर यू.पी.), साहित्य कुम्भ "रत्न श्री", हिम आभा (रेणुका), रत्न श्री (बम्बई), उत्कृष्ट साहित्यिक सेवा हेतू कहानी महाविद्यालय अम्बाला से सम्मानित।
कवि सम्मेलन करीब 100 कवि सम्मेलनों में भागीदारी। स्थानीय, राज्य स्तरीय, राष्ट्र स्तरीय।
रुचि : ग़ज़लें लिखना व सुनना।

छुट्टियाँ
शबनम शर्मा

गरमी की छुट्टियाँ शुरू हो गईं थीं। बच्चे पूरा वर्ष इन छुट्टियों के सपने संजोए रहते हैं। संजीव को भी नानी के पास जाना था। संजीव को मामा ननिहाल ने आए। २-३ दिन वो चुप-चुप सा रहा। परन्तु धीरे-धीरे वो घर में व आस-पड़ोस के बच्चों के साथ घुल-मिल गया था। उसने विपुल को अपना दोस्त बना लिया था। विपुल संजीव को शाम ढले ही अपने खेतों की तरफ ले जाता। उसे ट्यूबवैल के पानी से नहलाता। दोनों दूर-दूर तक दौड़ते, खेलते, कभी खेतों से मक्की तोड़ते, तो कभी खीरे। झबुआ जो खेतों में ही रहता था, उन्हें मक्की भून कर खिलाता। लस्सी का गिलास देना तो कभी न भूलता। घर आकर भी रात ८-९ बजे तक संजीव गली में अपने दोस्त के साथ घूमता। घर में नानी उसे रात को कहानी सुनाकर सुलाना कभी न भूलती। पूरा दिन घर में रौनक सी रहती। मामा के बच्चों की भी छुट्टियाँ थी। मामी तरह-तरह के व्यंजन बनाकर बच्चों को खिलाती। दिन बीतते गये। संजीव को इतवार को जाना था परन्तु ये क्या शुक्रवार को ही उसके पिता ने ड्राइवर को गाड़ी देकर भेज दिया संजीव को लिवा लाने के लिये। संजीव का मन घर जाने को न था वो भागा-भागा विपुल के पास उसे अलविदा कहने गया परन्तु रो पड़ा। विपुल ने कहा, तुम्हें तो खुश होना चाहिए तुम अपने माता-पिता के पास जा रहे हो।

संजीव ने कहा, विपुल तुम्हें पता है मुझे पहली बार लगा कि बच्चे क्या-क्या करते हैं? मैं तो सुबह उठता हूँ, आया मुझे तैयार करती है, टिफिन देती है और ड्राइवर भैया स्कूल छोड़ आते हैं। स्कूल से वापस आकर टेबल पर पड़ा खाना अकेला खाता हूँ और फिर सो जाता हूँ। ४ बजे उठकर टी॰वी॰ देखता हूँ।

तुम्हारा कोई दोस्त नहीं, खेलने नहीं जाते? विपुल ने पूछा।

संजीव बोला, दोस्त तो हैं पर जाऊँ कैसे, बाहर से ड्राइवर भैय्या दरवाजे पर ताला लगा जाते हैं। शाम को ६ बजे मम्मी-पापा आते हैं और घर खोलते हैं। मुझसे कोई बात भी नहीं करता। उनके साथ ही ट्यूशन वाले सर आ जाते हैं, ८:३० पर वो जाते हैं और मैं सो जाता हूँ।

ये कहकर संजीव रो पड़ा, कहने लगा, विपुल, ये छुट्टियाँ अब कब आएँगी?

अनाथ
शबनम शर्मा

नीलम के ब्याह को चार बरस बीत गये थे। हर वक्त सबकी खोजी नजरें उसे परेशान करती रहती थीं। घर में सास, ननदें, पति सभी को एक बच्चे की इच्छा थी, जो नीलम पूरी न कर पा रही थी। आखिर एक फैसला लिया गया कि बच्चा गोद ले लिया जाये। अनाथालय से बेटी ले ली गई। रिश्तेदारों को निमंत्रण भेजे गये, बड़ी धूम-धाम से नामकरण किया गया। घर में रौनक आ गई। बच्ची की किस्मत ही बदल गई। हर वक्त किसी न किसी की गोद, सुन्दर तोहफे सब कुछ नन्हीं को मिलता। समय का पलटा, नीलम की तबीयत खराब हुई, डाक्टर ने बताया वो माँ बनने वाली है, नन्हीं के आते ही ये शुभ खबर, नन्हीं का लाड़ और परवान चढ़ गया। बेटा हुआ। घर में खुशियाँ भर गईं। पर नन्हीं, छोटे भाई के आते ही बड़ी दिखने लगी। नीलम का सारा ध्यान, प्यार बेटे पर आकर्षित हो गया। घर के दूसरे लोग भी पोते को पाकर निहाल थे। समय के साथ-साथ दोनों बड़े हुए। नन्हीं सरकारी स्कूल में पढ़ी व भाई कान्वेन्ट में। नन्हीं सबका भरपूर ध्यान रखती, खासकर अपने भाई का। परन्तु परिवार में कुछ उसे सदैव ही खटकता रहता। उसकी हर चीज अब सब पर बोझ बन गई थी। घर के काम का दायित्व उस पर बढ़ता ही जा रहा था जबकि भाई को एक शहजादे सी परवरिश मिल रही थी। घर में भाई का जन्मदिन था मैं भी निमंत्रित थी। अच्छा खासा इन्तजाम किया गया। नन्हीं भाग-भागकर काम कर रही थी, कि उसके हाथ लगने से केक के पास रखा फूलदान टूट गया। भाई ने आव देखा न ताव, नन्हीं के जोरदार तमाचा जड़ दिया। नन्हीं रो पड़ी। उसने भी भाई को धक्का दे दिया कि नीलम बिफर सी गई व खींचती सी नन्हीं को अन्दर के कमरे में ले गई। आवाज साफ थी, "तेरी इतनी हिम्मत, अनाथालय की लड़की, तुझे हमने घर दिया, नाम दिया, मेरे बेटे पर हाथ उठाती है।" मैं शून्य में ताकती रह गई, सोचती, नन्हीं क्या अब अनाथ नहीं है, अनाथालय में नहीं रहती।

सम्पर्क : shabnamsharma2006@yahoo.co.in

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