विश्वास डॉ. मीना अग्रवाल |
‘क्यों स्मिता! इस कर्मों मारी कुंती माँ पर क्या भूत-सवार हुआ कि कुत्ते वाले पापा जैसे बुढ्ढे से प्यार कर बैठी, इस बुढ़ापे में। रमोला ने आते ही बातचीत का सिलसिला शुरू कर दिया। रमोला का स्वभाव ही कुछ ऐसा है कि वह इधर-उधर की बातों में अधिक दिलचस्पी लेती है। कॉलोनी की किस लड़की का प्रेम किससे चल रहा है? किस युवक ने किस युवती से चक्कर चला रखा है? कौन किसके साथ फ़रार हो गई शहर से? वह शहर में आए-दिन होने वाली ऐसी घटनाएँ ढूँढकर लाती है और देर तक बैठी उनकी समीक्षा करती रहती है। रमोला एक नर्स है और अवकाश का समय उसके लिए बतियाने का समय होता है। मेरा घर उसके घर के रास्ते में पड़ता है, इसलिए अक्सर वह यहाँ आ जाती है।
मैंने उसकी बात सुनी तो उत्तर देते हुए बोली, ‘तुम इस बात को यों भी तो कह सकती हो रमोला कि इस कुत्ते वाले पापा को इस बुढ़ापे में क्या सूझी कि कुंती माँ जैसी बुढ़िया को दिल दे बैठा।’
‘हाँ! यूँ भी कहा जा सकता है।’ रमोला एक चंचल मुस्कान अधरों पर लाती हुई बोली, ‘नाक को सीधे पकड़ो या हाथ घुमाकर। बात तो एक ही है।’
पिछले एक सप्ताह से कालोनी के लोग इस घटना पर आश्चर्य प्रकट कर रहे थे कि सत्तर साल की बुढ़िया शकुंतला अपना घर-बार छोडकर माइकिल जोसफ़ के यहाँ जाकर रहने लगी थी। माइकिल जोसफ़ की उम्र भी पिचहत्तर साल से कम नहीं थी। उसने एक नहीं, दो नहीं, पूरे तीन तगड़े कुत्ते पाल रखे थे, इसलिए कॉलोनी के लोग उसे कुत्ते वाले पापा के नाम से पुकारने लगे थे। जब भी वह अपने तीनों कुत्तों की जंजीर थामे घर से बाहर निकलता, लोग आश्चर्य से उसकी ओर देखने लगते।
शकुंतला माँ अभी कुछ वर्ष पहले तक नारी निकेतन की प्रबंधिका थी। उसे अपने सरकारी कर्त्तव्यों से ज्यादा समाजसेवा के कामों में दिलचस्पी थी। सत्तर साल की उम्र पर पहुँच गई थी। इसलिए कालोनी और शहर के सभी परिचित लोग उसे कुंती माँ कहकर पुकारने लगे थे। वह अकेली और निःसंतान थी। जब वह अपने लंबे-चौड़े घर को छोड़कर कुत्ते वाले पापा के यहाँ चली आई तो इस घटना को लेकर लोगों में तरह-तरह की चर्चाएँ होने लगीं? कोई कुछ कहता, कोई कुछ। जितने मुँह, उतनी ही बातें थीं।
मैंने घटना में शामिल दोनों पात्रों की पृष्ठभूमि पर दृष्टि डालते हुए सोचा- ’है वास्तव में अजीब बात?’
तभी रमोला की आवाज मेरे कानों में आई, ‘क्यों स्मिता! क्या सत्तर-पिचहत्तर साल की उम्र में भी प्रेम का उफ़ान बाकी रह जाता है?’ वर-वधू दोनों के बाल बगुलों जैसे सफ़ेद, दोनों के चेहरों पर झुर्रियाँ पड़ी हुईं। न मुँह में दाँत, न पेट में आंत। ऐसे में चले हैं प्रेम करने। मत मारी गई है क्या दोनों की?’
रमोला अपनी बात कह चुकी तो मैंने इस चर्चा को हँसी में टालने की कोशिश करते हुए कहा, ‘पुराने जमाने के लोग जो कह गए हैं रमोला, इश्क़ न जाने जात-कुजात। अब तुम इसमें एक पंक्ति की वृद्धि और कर लो... अब इस कहावत को समय के अनुसार ढालकर कहो, इश्क़ न जाने जात-कुजात, प्रेम न जाने बूढ़ा गात।’
रमोला ने यह सुना तो ठट्ठा मारकर हँसी, ‘बात तो तुमने सच कही है स्मिता। यह जमाना ही निर्लज्जता का है? न औरतों की आँख में लाज है, न मर्दों में कोई लिहाज।’
रमोला अभी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई थी कि मैंने उसे बीच में टोकते हुए कहा, ‘पर सुना है कुंती माँ कुत्ते वाले पापा की सेवा तन-मन से कर रही है दिन रात। देवता की तरह पूज रही है उसे। हर काम बैठे-बैठे हो रहा है बड़े मियाँ का। चलो, जवानी में असहनीय दुख झेले थे कुत्ते वाले पापा ने, बुढ़ापे में इसी बहाने कुछ आराम मिला।’
‘यह तो तुम ठीक कह रही हो स्मिता। रमोला मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए बोली, ‘कुत्ते वाले पापा को तो मुफ्रत में घर-बैठे एक सेविका मिल गई। पर प्रश्न यह है कि कुंती माँ को इससे क्या मिला? दिनरात जुटी रहती है, बूढ़े की सेवा में। न समाज की चिंता, न धर्म का खयाल।
मैंने महसूस किया कि रमोला विषय को धार्मिक भेदभाव की तरफ़ मोड़ने का प्रयास कर रही है। मैंने टोका- ‘मानव-सेवा के लिए किसी धर्म के साथ बँधे रहने की जरूरत नहीं होती है रमोला, और जहाँ तक प्रश्न प्राप्ति का है, माना कुंती माँ को धन के रूप में कुछ प्राप्त नहीं हुआ है, पर सेवा का आनंद अपने-आप में भी तो एक प्राप्ति ही है।’
‘खाक पड़े ऐसी प्राप्ति पर।’ रमोला खीजकर बोली, ‘मौत के कुएँ में पाँव लटकाए बैठे हैं और चले हैं प्रेम करने? अब कोई संतान तो होने से रही, इस निःसंतान जोड़े के।’
‘तुम बेकार की बात कह रही हो रमोला।’ मैंने उसके विचारों की दिशा बदलने का प्रयास किया.., ‘प्रेम हमेशा शारीरिक ही नहीं होता, कई बार मानसिक भी होता है, बहन।’
मुझे लगा, रमोला मेरी बात सुनकर अवाक-सी रह गई। मैंने उसे गंभीरतापूर्वक समझाते हुए कहा, ‘कई बार हम लोग विषय को उसकी पूरी गहराई के साथ नहीं समझते हैं, इसलिए तरह-तरह के भ्रमों में पड़ जाते हैं, जबकि वास्तविकता कई बार कुछ और ही होती है।’
रमोला ने मेरे संकेत पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। बोली, ‘वास्तविकता कुछ और नहीं है स्मिता बहन.. बस इतनी है कि एक सत्तर साल की बुढ़िया अपने से अधिक बुढ्ढे व्यक्ति को दिल दे बैठी और उससे संबंध स्थापित कर लिए।’
‘मैं तुम्हारी बात से सहमत नहीं हूँ रमोला।’ मैंने एक बार फ़िर उसे समझाने की कोशिश करते हुए कहा- ‘इसका निर्णय इतनी जल्दी नहीं किया जाता है, उन परिस्थितियों को भी देखा जाता है, जिसमें किसी व्यक्ति ने कोई ऐसा कदम उठाया, जो हमारी-तुम्हारी राय में उसे नहीं उठाना चाहिए था।’
‘तो क्या तुम जानती हो, वे परिस्थितियाँ क्या थीं, जिनमें कुंती माँ ने अपना घर-द्वार छोडकर कुत्ते वाले पापा का हाथ थामना पसंद किया।’ रमोला ने मुझसे पूछा।
‘मैं अधिक नहीं जानती पर कल पिंटू के दादा कुत्ते वाले पापा की चर्चा करते हुए कह रहे थे।’ मैंने गोद में सो रहे पिंटू की पीठ सहलाते हुए कहा रमोला से, ‘वे कह रहे थे माइकिल जोसफ़ की धर्मपत्नी रोजी जोसफ़ एक सड़क दुघर्टना में जवानी में ही मर गई थी। तब उनके तीन संतानें थीं, तीन बेटे, स्टीफ़न, सायमन और क्रिस्टोफ़र...’
‘पर स्मिता बहन! ये नाम तो उनके यहाँ पले हुए कुत्तों के हैं।’ रमोला ने मुझे बीच में टोकते हुए आश्चर्य व्यक्त किया।
‘हाँ! मैं जानती हूँ, माइकिल जोसफ़ ने यही नाम अपने कुत्तों के भी रखे हैं पर क्यों? आगे की बात सुनो।’ मैंने रमोला के आश्चर्य को दूर करने का प्रयास किया और अपनी बात आगे बढ़ाई, ‘पत्नी की मृत्यु के बाद माइकिल जोसफ़ ने दूसरा विवाह नहीं किया। वह पत्नी की इन तीनों निशानियों को छाती से लगाकर बैठ गए। उन्हें पाला पोसा, पढ़ाया, लिखाया।’
मैंने कुत्तेवाले पापा की कहानी को यहीं छोड़कर रमोला से पूछा, ‘क्यों बहन, जिस व्यक्ति ने युवावस्था में बच्चों की खातिर दूसरा विवाह न किया हो, वह अब मौत के निकट आकर ऐसा क्यों कर रहा है?’
‘हाँ, यह बात तो सोचने की है स्मिता?’ रमोला ने अपने पहले मत के विरोध में सच्चाई प्रकट होते देखी तो जिज्ञासापूर्वक मुझसे पूछा, ‘फ़िर वे तीनों बेटे कहाँ गए माइकल जोसफ़ के? क्या वे भी मर गए? माइकिल जोसफ़ ने उनके नामों पर अपने कुत्तों का नाम क्यों रखा?’
मैंने महसूस किया, रमोला के स्वर में एक साथ सब कुछ जानने की उत्सुकता थी।
मैंने उसे बताया, ‘मैं भी इस बारे में बहुत अधिक नहीं जानती हूँ रमोला, पर पिंटू के दादा ने जो कुछ बताया था, वही दोहरा रही हूँ। उन्होंने बताया था कि जब माइकल जोजेफ़ की पत्नी का देहांत हुआ तब स्टीफ़न आठ साल का था, साइमन पाँच साल का और क्रिस्टोफ़र तीन साल का। तुम समझ सकती हो रमोला, इतनी कम उम्र के बच्चों को पालने-पोसने में कितना कष्ट उठाना पद्आ होगा बूढ़े जोसफ़ को।
‘हाँ तुम ठीक कहती हो स्मिता। पर जोसफ़ ने उसी समय पुनर्विवाह क्यों नहीं कर लिया था?’ एक स्वाभाविक-सा प्रश्न पूछा रमोला ने।
‘उसे यह भय रहा होगा कि स्टैप मदर कहीं इन बच्चों के साथ सौतेला व्यवहार न करे। इनके साथ अन्याय न हो!’ जोजफ़ की इस भावना को समझना मुश्किल नहीं है रमोला।’
‘लेकिन आम पुरुष तो ऐसा नहीं कर पाते, स्मिता।’ रमोला यह कहते हुए आश्चर्य से भर गई थी।
‘हाँ! मैं भी यही समझती हूँ।’ मैंने उत्तर देते हुए कहा, मैं समझती हूँ जोसफ़ साधारण पुरुषों जैसा नहीं था। उसने बच्चों के लिए अपनी पूरी युवावस्था दाँव पर लगा दी।’
मैंने अपनी बात जारी रखी, ‘पिंटू के दादा बताते थे कि बच्चों के युवा होने तक जोसफ़ ने न दिन को दिन समझा, न रात को रात। उसने माता और पिता दोनों का कर्त्तव्य निभाया। उन्हें माँ का प्यार भी दिया और पिता का दुलार भी।’
‘पर वे तीनों गए कहाँ?’ बूढे जोसफ़ के साथ तो नहीं रह रहे हैं वे।’ रमोला ने यह सब जानने की इच्छा प्रकट की, ‘अच्छी नौकरियों पर लग गए तीनों। उनमें से एक इन दिनों राँची में है, दूसरा कलकत्ता में और तीसरा गोहाटी में।
‘क्या बूढ़े पिता की उनमें से कोई भी खबर नहीं लेता है?’ रमोला ने जिज्ञासा से भरा एक और प्रश्न किया।’
‘पिंटू के दादा बताते थे कि’ - मैं अपनी धुन में कहती गई, ‘तीनों ने बारी-बारी से लवमैरिज कर अपना-अपना घर बसा लिया और बूढ़े पिता को यों भूल गए, जैसे उसने कभी उनके साथ कुछ किया ही न हो।’
‘उफ़! इतना बड़ा त्याग करने वाले पिता के साथ बेटों का ऐसा व्यवहार?’ अनायास रमोला के मुँह से निकला।
मैंने उसकी बात सुनी और बूढ़े जोसफ़ की जीवन-गाथा को और आगे बढ़ाया, ‘तीनों बेटे मुँह मोड़ गए और बूढ़ा जोसफ़ जब उनकी ओर से बिलकुल निराश हो गया तो उसने हताश होकर तीन कुत्ते पाल लिए।
‘आदमी जब मानव जाति से निराश हो जाता है तो शायद वह पशु-पक्षियों की ओर ही आकर्षित होने लगता है।’ मैंने पिंटू के दादा से सुनी गाथा को एक क्षण भूलकर जोसफ़ की घटना पर एक मनोवैज्ञानिक टिप्पणी की।
‘हाँ! हो सकता है ऐसा हो।’ रमोला ने मुझसे थोड़ी सहमति व्यक्त करते हुए कहा।
‘पिंटू के दादा बता रहे थे-’ मैं लौटकर पुनः अपने ससुर के प्रसंग पर आ गई। ‘जोसफ़ ने पता नहीं किस भावना के वशीभूत होकर इन कुत्तों के नाम भी अपने बेटों के नाम पर स्टीफ़न, सायमन और क्रिस्टोफ़र ही रखे। वह अब इनसे भी इतना ही प्यार करता है जैसा कोई अपनी संतानों से करता है।’
‘शायद यह सब निराशा में हुई प्रतिक्रिया के कारण ही किया होगा माइकल जोसफ़ ने।’ रमोला वास्तविकता को समझते हुए बोली, मैंने अपना वक्तव्य आगे बढ़ाया। ‘पिंटू के दादा बता रहे थे कि माइकल जोसफ़ अब इन कुत्तों को हर समय अपने साथ रखता है। अपने साथ ही खिलाता-पिलाता है, लंच भी और डिनर भी। कुत्तों से उसे वह प्यार मिल रहा है, जो पुत्रों से मिलना चाहिए था।’
‘मानवता से निराश हो जाने की बहुत ही हृदयविदारक घटना है यह।’ रमोला ने जोसफ़ के अतीत से परिचित होते हुए कहा।
‘हाँ! मैंने उत्तर दिया और जोसफ़ के संदर्भ को आगे बढाया, ‘पिछले दिनों जब जोसफ़ को टायपफाइड हो गया तो उसके पालतू कुत्ते जोसफ़ की कोई मदद नहीं कर सके। वे न दवा ला सकते थे, न डाक्टर को बुला सकते थे। तीनों उदास उदास मन से जोसफ़ के सिरहाने बैठे रहते, भूखे प्यासे। वे प्यार तो कर सकते थे अपने स्वामी को, पर बीमारी में देखभाल नहीं कर सकते थे उसकी।’
बात पूरी नहीं हुई थी कि रमोला ने बीच में हस्तक्षेप करते हुए कहा- ‘इसी दयनीय स्थिति में बूढ़ी माँ कुंती आ गई होगी बीमार और बूढ़े जोसफ़ के पास।’
‘हाँ! निस्संदेह ऐसा ही हुआ होगा।’ मैंने रमोला की बात का समर्थन किया। तभी द्वार पर आहट हुई। देखा जोसफ़ के पड़ोस में रहने वाली कुमकुम धीमी चाल से चली आ रही थी। मैंने उसका स्वागत करते हुए बैठने के लिए कहा।
कुमकुम कुर्सी पर बैठती हुई बोली, ‘जोसफ़ ने स्वस्थ होते ही अपने कुत्तों को बेच दिया। लेकिन उनके नाम वापस ले लिए। अब वह कुंती माँ के साथ खुश है।’
मैंने सुना तो अनायास मेरे मुँह से निकला, ‘शायद अब मानवता पर उसका विश्वास लौट आया है।’ किसी ने इसका कोई उत्तर नहीं दिया और अब हम तीनों किसी और विषय में वार्ता करने लगे।
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