Friday, June 1, 2007

डॉ सोनाली नरगुंदे

डॉ सोनाली नरगुंदे

व्याख्याता, पत्रकारिता एवं जनसंचार के क्षेत्र में देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर से शिक्षाप्राप्त

तुम्हारा प्रेम

सभी हर्फ मेरी
किताबों के धुँधले
हो चुके है,
उनमें अब सिर्फ़
तुम्हारी यादों के
फूल महकते हैं।

सब कुछ छूकर भी
कुछ है अनछुआ,
वहीं अनछुआ, अनकहा
है तुम्हारा प्यार मेरे लिए।

कही अनकही बातों
में जो भी रहेगा
शेष वहीं होगा
अंतहीन प्रेम का विशेष।

एक ही मेज़ होगी
एक ही कुर्सी
अलग-अलग नहीं होगी
सोच हमारी
हम साथ में प्यार बाँटेंगे।

मेरे दिल के समंदर में
उतरने के बाद भी
वह डूबता नहीं
क्योंकि वह तैरना जानता है
और मैं नहीं।

दोपहरी की उमस
बंद पंखे को देखती
चार आँखें,
एक गलीचा
खुबसूरत बेल-बूटों
की कहानी में
दो दिमाग़
महसूस करते हैं
सिर्फ़ देह गंध
शब्दों को अभाव
भावनाएँ तैर रही हैं
श्वास बनकर

जीवन की मधुरतम स्मृतियों में
सहेजा मन का उल्लास हो
स्वर्णिम अतीत का
विस्तृत आकाश हो
नव जीवन की कल्पना से भरपूर
एक विचार मात्र
मेरे प्रतिछाया हो तुम

चुनकर लाए थे एक फूल
वो लौटाना चाहती थी
किसी ने दिया था शायद तुम्हें
जो भूल से मेरे पास छोड़ गए थे,
इस एक बहाने से
तुम्हारे पास आना चाहता थी।

No comments: